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{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
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<poem>
मग़रूर लफ्ज़ तुमने कभी नहीं कहा, पर तुम कहोगे
किसी दिन भविष्य में, ग़ुरूर भरे चार.
टिकाये अपना गर्म नम कपोल अपने एक उजले हाथ पर
मेरी पुस्तक का खंड खोले हुए फिर तुम कहोगे,
</poem>
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