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02:30, 31 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अक्सर मेरे मन में आता है
कि शायद हम स्वप्न देख सकते हैं मरने पर
हालाँकि निश्चित नहीं हूँ मैं कि होता है ये
ओ काश कि ऐसा होता! तो मेरा आगे का वक़्त
वास्तव में होता बड़ा भाग्यवान वक़्त;
मैं सदैव तुम्हारे स्वप्न देखता रहता
</poem>