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{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
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<poem>
दीप्त केसर का पुष्प जगाता है आने वाले साल को;
अपने पुराने अड्डों पर दिखने लगते हैं पंक्षी;
उस दूर दिख रहे एल्म के वृक्ष से,
जो अभी भी सांवला है बारिश के कारण,
वो जंगली कबूतर गहरे ढूँढता है नीचे अनाज के कण
फेंके हुए कंकड़-गिट्टी वाले उस रास्ते पर;
और चौखट पर आती है ये गीतक रॉबिन
रोटी के टुकड़े की तलाश में.

उड़ जाओ! भाग जाओ! मेरे पास नहीं है
तुम्हारा स्वागत करने का धैर्य, हाल ही में जो उस में था.
मेरी सबसे पुरानी दोस्त चली गयी है
आह! शायद मेरी अकेली दोस्त!
और कुछ जो थोड़े प्रिय हैं, बहा ले जाए गए जो कहीं दूर,
एक उजले तट पर देख रहे हैं मेरा रास्ता

</poem>
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