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02:39, 31 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वाल्टर सेवेज लैंडर
|अनुवादक=तरुण त्रिपाठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह जिसे मैं प्रेम करता हूँ (ओह व्यर्थ में!)
तैरती है मेरी उनींदी आँखों के सामने
जब वो आती है कम करती है मेरी तकलीफें
जब वो जाती है उठती हैं कितनी ही टीसें
तुम जिसे पहुँचती हैं यादें और प्रेम
ओ नाज़ुक नींद! विस्तृत कर दो अपना राज्य!
यदि इस तरह ही वो आराम देती है मेरी आहों को
तो पुनः मुझे अब जगने ही ना दो
</poem>