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14:13, 20 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एस. मनोज
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<poem>
बनबू नबका बरीखकें शुभे हो शुभे
सबहक आशा शुभे अभिलाषा शुभे
बनबू.....
खेती पथारी नहि जीवन चलाबै
कृषक सभ खेतमे नोर चुआबै
झूलै न फसरी, होय जीवन शुभे
बनबू....
रोजी आ रोटी ल' गाम छोड़ै छै
बाल बच्चा बाप बिनु बिलटैत रहै छै
नवतुरिया ल' बनबू योजना शुभे
बनबू....
आय धरि जे किछु पयबे नहि कयलकै
श्रमशक्ति सँ जगकें सुन्नर बनैलकै
ओ श्रमिक लेल बनबू आब दुनिया शुभे
बनबू.....
शिक्षा आ रोजीक अवसर दियाबू
पिछड़ल जे अछि ओकरा आगू बढ़ाबू
दुखिया ल' बनबू सभ नियम शुभे
बनबू....
</poem>