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<poem>
वर्जनाएँ काव्य में यदि हो समादृत क्या कहें।
वासना शृंगार में यदि हो अनावृत, क्या कहें।

त्राण अंतर्वेदना का चुटकुलों में खोजता,
आज श्रोता छोड़ कविता का रसामृत, क्या कहें।

लिख रहे निज रक्त से सैनिक कथा वलिदान की,
फिर तुम्हारा राष्ट्र-गौरव हो न जागृत, क्या कहें।

मंच पर सँवरी सजी सब दिख रहीं कठपुतलियाँ,
खो गया सारा कहीं सौंदर्य प्राकृत, क्या कहें।

मृत्यु जीवन-गीतिका में रच गयी यों अंतिका,
एक मुट्ठी में किया आकाश विस्तृत, क्या कहें।

भोगकर जो छोड़ देते हैं निराश्रित पत्नियाँ,
कर रहे वे राम को निर्द्वंद उद्धृत, क्या कहें।

मूक सच्चे कवि दिखे वाचाल दिखते हैं अकवि,
हो रही कविता अकवि के हाथ अपहृत, क्या कहें।

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आधार छंद-गीतिका
मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गालगा
</poem>
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