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07:28, 27 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम नीरव
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
गुदगुदाये पवन फागुनी धूप में।
खिलखिलाये बदन फागुनी धूप में।
है न किंचित तपन या चुभन या घुटन,
रेशमी-सी छुअन फागुनी धूप में।
डालियाँ बाल-कोपल लिए गोद में,
दादियों-सी मगन फागुनी धूप में।
ठूँठ हरिया गए वृद्ध सठिया गये,
है अजब बाँकपन फागुनी धूप में।
गरमियाँ-सर्दियाँ मिल रहीं आप क्यों,
कुछ न करते जतन फागुनी धूप में।
प्रौढ़ तरु कर रहे माधवी रूप का,
संतुलित आचमन फागुनी धूप में।
ले विदा शीत नीरव पलट घूम कर,
कर रहा है नमन फागुनी धूप में।
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आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा
</poem>