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इकतीस की उम्र में / निशांत

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{{KKRachna
|रचनाकार=निशांत
}}

आकाश इतनी बड़ी शुभकामनाएँ <br>
और पृथ्वी इतना बड़ा प्यार <br><br>

मुझे मालूम है, दोस्त! <br>
इकतीस की उम्र में <br>
नौकरी पाने की <br>
हताशा और ऊब से ऊपर उठने का आनंद <br><br>

' इतना पढ़ के क्या किए ! '<br>
जैसे जुमलों से आहत हुए शरीर का घाव <br>
कितनी आसानी से भर जाता है <br>
एक नौकरी के मलहम से <br><br>

माँ ख़ुश होती है <br>
चौड़ा हो जाता है पिता का सीना <br>
भाई की आँखों में आ जाती है चमक <br>
प्रेमिका की आँखों में बैठी कोमलता <br>
उद्दाम साँसों में तब्दील हो जाती है <br>
बहन गर्व से बतलाती है सहेलियों के बीच<br>
ये हैं, मेरे बड़े भाई साहब <br>
जो ' फलाँ ' जगह ' फलाँ ' होकर गए हैं...<br><br>

एक नौकरी <br>
और कितना-कितना आराम <br>
घर तो घर <br>
मोहल्ले से होकर भगवान् तक की आँखों में <br>
आ जाती है दीप्ति<br>
आत्मा में शान्ति <br>
और क्या ... क्या ...<br><br>

पढ़ाई पर छिड़ी सारी बहस <br>
चली जाती है चूल्हे-भाड़ में <br>
और कोई कारोबार करने की <br>
धीमी आँच में पकती हुई विचारधारा<br>
तब्दील हो जाती है एक शानदार मुहावरे में <br>
' भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ' <br><br>

याद आती है तुम्हारी बहस <br>
नौकरी, बेरोज़गारी, प्रेम, शिक्षा, आरक्षण, जनसंख्या<br>
फ़िल्म पत्रिकाएँ, कविता-कहानी-उपन्यास, पुरस्कार <br>
और न जाने कितने मुद्दों पर <br>
आँखें लाल किए और मुट्ठी ताने <br>
दुनिया को बदल डालने के स्वप्न के साथ <br>
' जला दो - मिटा दो ' की भाव-भंगिमा के साथ <br>
' एक धक्का और देते ' के नारों के साथ <br>
शायद हम एम.ए. में थे उन दिनों <br>
देश के सबसे उत्तर-आधुनिक विश्वविद्यालय में <br>
' लाल सलाम-लाल सलाम' और 'हल्ला बोल-हल्ला बोल' कहते हुए <br><br>

उम्र कम थी <br>
और नहीं जानते थे<br>
इकतीस की उम्र में नौकरी पाने का सुख <br><br>

आकाश इतनी बड़ी शुभकामनाएँ<br>
और पृथ्वी इतना बड़ा प्यार <br>
आज पहली बार दोस्त !<br>
आज पहली बार ...<br><br>