{{KKCatKavita}}
<poem>
तिरा शौक तुझको बहाल हो, हो जीना मेरा मुहाल हो
तू बढा करे यूं ही चांद सा, मिरा समंदरों सा हाल हो।
डूबता पत्थर नहीं हूं सूर्य हूं मैं
हर सुबह तेरे मुकाबिल आ रहूंगा।
जो नहीं है वो ही शै बारहा क्यों है
किसी की यादों को भला मेरा पता क्यों है।
वफा का शोर है कितना गहरा
अखिल जहान है इससे बहरा।
खताएं उम्र भर मुझसे होती रहीं