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|रचनाकार=दिनेश शुक्ल
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कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन बसंतवसंत,प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ बसंत।वसंत।
रोम रोम रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।
रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले फाग,साँसों में कस्तूरियाँ, बोये मीठी आग। पलट पलट मौसम तके, भौचक निरखे धूप,रह रहकर चितवे हवा, ये फागुन के रूप। मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलालअंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल। होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात। अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद। अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ। पारा, पारस, पद्मिनी, पानी, पीर, पलाश,प्रंय, प्रकर, पीताभ के, अपने हैं इतिहास। भूली, बिसरी याद के, कच्चेपक्के रंग,देर तलक गाते रहे, कुछ फागुन के संग।</poem>
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