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उदास उल्लू ... / बरीस सदअवस्कोय / अनिल जनविजय
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21:14, 10 मार्च 2019
अबोले हैं शब्द
ठण्डी छाती को फाड़कर निकलते हैं,
शाम को
जब
विफल हो बिखरते हैं,
जब उल्लू चीख़-चिल्ला रहा होता है।
अनिल जनविजय
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