Changes

विनती / उमेश बहादुरपुरी

407 bytes added, 05:29, 13 मार्च 2019
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
}}
{{KKCatBhojpuriRachnakaar}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गद्य पद्य न´् नञ् छंद के जानूँ न´् नञ् भाषा के ग्यान।ग्यानदिला सकऽ हऽ तूँही तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान।।पहचान संसकिरित अंगरेजी हिंदी हे ग्यानी के खातिर।खातिरअग्यानी मगही ही हम ओकरो में न´् शातिर।नञ् शातिरविनती कर रहलुँ तोहरा से हम बालक नादान।। नादान दिला...सकऽ हऽ तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान 
हम्मर बाजी तोर हाँथ में रखिहा मइया लाज।
न´् नञ् सरसता वाणी में हे अधूरा हम्मर साज।हमरा रस्ता न´् नञ् सूझे हम राही अंजान।। अंजानदिला...सकऽ हऽ तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान कोय कहऽ हे वीणापाणी कोय मइया शारदे।शारदेहमरा जइसन अग्यानी बोले मइया हमरा तार दे।देचाहऽ त हो जाय मइया पल भर में उत्थान।। उत्थानदिला...सकऽ हऽ तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान ऐसन कुछ लिखवा दे मइया देके आशीर्वाद।आशीर्वादमिट गेला पर अमर रहूँ हम लोग करथ फिर याद।यादहमरो तूँ करवा दऽ मइया साहित-रस के पान।। पान दिला...सकऽ हऽ तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान
</poem>