Changes

<poem>
97घृणा के बीजबीजते दिन-रातप्रेम न उगे।98लंका समझजलाया था जो घरमेरा था वह ।99वाद-विवादअधमरे संवादजीवन-चर्या ।100पूजा निष्कामकलह दिन-रातनहीं विराम ।101शास्त्रों का सारजग के सारे पाशहमने रचे ।102नेकी न करलोग मार डालेंगेख़ुदा से डर ।103उजड़ा घरसर्प -जैसी फुत्कारकाँपी दीवार ।104चुभी आँखों में कल्याण- कामनाएँअंधड़ हेरे ।105'''लौटना नहीं'''बेघर -बेसहाराखुला अम्बर ।106रिश्तों का तौंकदिन -रात टीसतागले में फँसा।107बिछे अंगारचला हूँ नंगे पाँवाकोई न ठौर ।-0-
<poem>