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05:19, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तसव्वुर का इक आइना चाहती हूँ
अब अपनी अना देखना चाहती हूँ
बहुत दूर मझधार से हैं किनारे
तेरा नाम ले डूबना चाहती हूँ
समझता नहीं है जो उल्फ़त की बातें
उसे हर घड़ी सोचना चाहती हूँ
अँधेरी निशा में जो टूटा सितारा
ख़ुदा से तुझे माँगना चाहती हूँ
मिले वस्ल या हिज्र के ग़म मुझे मैं
यही प्यार का सिलसिला चाहती हूँ
</poem>