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05:35, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मान के दिन गुजरने लगे
स्वर्ण गुंचा से तुलने लगे
जाने कैसी हवा चल रही
काफ़िले रोज लुटने लगे
है गगन आँख के सामने
उड़ चलो पंख हिलने लगे
लाख काँटे बिछे हों मगर
राह पर पाँव बढ़ने लगे
खुशबुओं की उठा लेखनी
दर्द फूलों का लिखने लगे
</poem>