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07:44, 19 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
माँ के समक्ष शीश झुकाते सदैव हैं
हो मुग्ध भाव पुष्प चढ़ाते सदैव हैं
वीणा सदा बजी है तुम्हारी कृपा भरी
सुर ताल की समझ सभी पाते सदैव हैं
माँ के चरण दरस के बिना चैन है कहाँ
जो कौल कर लिया वह निभाते सदैव हैं
हैं विघ्न अनेक जगह भी कंटकों भरी
पर भक्त तुम्हारे चले आते सदैव हैं
जिसने शरण गही उसे वरदान है मिला
तेरी दया का दान वह पाते सदैव हैं
</poem>