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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
पीर उठती है दर्द बहता है
हाल हर रोज यही रहता है

सिर्फ मेरी नहीं कहानी ये
दर्द हर शख्स यही सहता है

आँसुओं को छुपाए है रखता
आह भरता न कोई कहता है

उसकी आँखों का हर छिपा आँसू
मेरी आँखों से ही क्यों बहता है

लड़खड़ा कर स्वयं संभल जाता
बाँह तो कोई नहीं गहता है

</poem>