Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>

तुम्हारे हिज्र में है ज़िंदगी दुश्वार बरसों से
तुम्हें मालूम क्या तुम हो समंदर पार बरसों से

चले आओ तुम्हारे बिन न जीते हैं न मरते हैं
बनी है ज़िंदगी जैसे गले का हार बरसों से

कभी दुनिया से हम हारे कभी तुमसे कभी खुद से
हमारी इश्क़ में होती रही है हार बरसों से

तुम्हारे नाम का मै मांग में सिंदूर भरती हूँ
तुम्ही हो आईना मेरा तुम्ही सिंगार बरसों से

निकलना कश्ती ए उम्मीद तूफानों से मुश्किल है
एक ऐसे नाख़ुदा के हाथ है पतवार बरसों से

इसी मिल्लत के गहवारे को हिंदुस्तान कहते हैं
कहीं रौशन शिवाले और कहीं मीनार बरसों से

सुमन दिन रात किस की मुन्तज़िर रहती हैं ये आँखें
ये किस की राह तकते हैं दर ओ दीवार बरसों से

</poem>