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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
ग़म में रख कर तुम्हें मुब्तिला देर तक
आज़माएगा तुम को खुदा देर तक

जब छिड़ा है तेरा तज़क़िरा देर तक
दर्द दिल में मेरे फिर उठा देर तक

इक पल के लिए उन से नज़रें मिलीं
और मेरा दिल धड़कता रहा देर तक

बेरुख़ी तो तेरी थी ज़रा देर की
हाँ मगर दिल हमारा दुखा देर तक

तुम हमारे रहो हम तुम्हारे रहें
रोज़ मांगी है हमने दुआ देर तक

दिन जवानी के फिर याद आ जाएंगे
जब भी देखोगे तुम आईना देर तक

मुस्कुराई हैं कलियाँ खिले गुल सभी
काश ठहरे ये बादे सबा देर तक

</poem>