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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>

आ के ठहरें हैं जो पलकों पे हमारे आँसू
बन न जायें कहीं टूटे हुए तारे आँसू

फिर तेरी याद से बोझल हुईं आँखें मेरी
आ के फिर ठहरे हैं पलकों के किनारे आँसू

ए शबे ग़म तू अकेली तो नहीं रोई है
साथ हम ने भी तेरे उस पे हैं वारे आँसू

आँख से गिरते हैं और खाक़ मे मिल जाते हैं
ढूँढते हैं तेरे दामन को हमारे आँसू

तीरगी बढ़ती है जब भी ग़मे तन्हाई की
बन के पलकों पे चमकते हैं सितारे आँसू

हमको उस ने ही रुलाने की कसम खाई है
जिससे देखे नहीं जाते थे हमारे आँसू

माँग में अपनी सजा लूँगी सितारों की तरह
खाक़ में मिलने नहीं दूँगी तुम्हारे आँसू

वो जो पत्थर था उसे फूल न कर पाए सुमन
हो गये इश्क में नाकाम ये सारे आँसू

</poem>