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05:30, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
हसीन ख्वाबों की तो नर्मियाँ बहुत सी हैं
हकीकतों की मगर तल्खियाँ बहुत सी हैं
दिलों के बीच अभी दूरियाँ बहुत सी हैं
वफा की राह में मजबूरियाँ बहुत सी हैं
शब ए फिराक़ ये आवाज़ तुम को देती हैं
मेरी कलाई में जो चूड़ियाँ बहुत सी हैं
कभी भुला न सके दिन हम अपने बचपन के
नज़र में आज भी वो तितलियाँ बहुत सी हैं
हमें कफस न नज़र आऐगा रिवाज़ों का
मगर अभी भी पड़ी बेड़ियाँ बहुत सी हैं
खिज़ा ने पहना कहां ज़र्दे पैरहन पूरा
बची शज़र पे हरी पत्तियाँ बहुत सी हैं
'सुमन 'लबों पे तबस्सुम मैं फिर भी रखती हूं
लगीं जिगर पे मेरे बरछियाँ बहुत सी हैं
</poem>