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05:47, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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|संग्रह=
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<poem>
जो भी सोचेगा वो हम को सोचता रह जाएगा
देख लेगा इक नज़र तो देखता रह जाएगा
तू बुरा कर या भला ये सब तेरी मर्ज़ी पे है
तू न होगा बस यहाँ तेरा किया रह जाएगा
माल ओ ज़र पे नाज़ करना छोड़ दे नादान तू
देख लेना ये यहीं पे सब धरा रह जाएगा
रूह निकलेगी बदन से खाक़ होगा ये बदन
अक्स होगा और न तेरा आईना रह जाएगा
आँधियां नाकाम हो जाएंगी इक दिन देखना
ये मुहब्बत का दिया जलता हुआ रह जाएगा
ज़िंदगी भर को तुम्हारी रहनुमाई के लिए
हम न होंगे तो हमारा नक्श ए पा रह जाएगा
रश्क़ ए गुल चेहरा है उस का चाँदनी जैसा बदन
आईना भी देख ले तो देखता रह जाएगा
ज़िंदगी में जो भी रौनक़ है वो सारी तुम से है
ज़िंदगी में तुम नहीं होगे तो क्या रह जाएगा
मर के भी ज़िंदा रहेंगे सबके दिल में हम 'सुमन'
हम न होंगे पर हमारा तज़क़िरा रह जाएगा
</poem>