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05:57, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
होगा किसी के हुस्न का सौदा यहीं कहीं
यूसुफ खरीद लेगी ज़लैख़ा यहीं कहीं
शायद इधर उधर पड़ी हों अब भी किर्चियां
टूटा था आँखों का कोई सपना यहीं कहीं
अहले जुनूँ के नक़्श ए कफे पा यहाँ पे हैं
होना तो चाहिए कोई सहरा यहीं कहीं
उस पेड़ की वो शाख़ भरी होगी फूलों से
लिक्खा था जिस पर नाम तुम्हारा यहीं कहीं
हैरत है देख कर कि जहाँ उड़ रही है खाक़
बहता था मेरे ख़्वाब का दरिया यहीं कहीं
खुशबू उसी की आज फ़ज़ाओं में है घुली
उम्मीद है 'सुमन' कि वो होगा यहीं कहीं
</poem>