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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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<poem>
सुवासित पुष्पों का उबटन सजाये देखो आई धूप
नवोढा सी लजाती अंगना मेरे भी उतरी धूप

बचा कर आँख सूरज से धरा की बाँहों में सिमटी
सजीले फूलों के कानों मे हँसकर फुसफुसाती धूप

चिरईया सी फुदकती है सघन कुंजों की डालों पर
कभी फुनगी पे जा कर धीरे से झरती गुनगुनाती धूप

चुनरिया ओढे सतरंगी चली इठलाती उपवन को
किसी तितली को छू कर फूलों की बाँहों में बिखरी धूप

पवन से रूठ छिप जाती है अमराई की छाया में
दबे पैरों फिर आकर पेड़ पर आ मुस्कुराती धूप
</poem>