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08:42, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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[[Category:दोहे]]
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हे ईश्वर विनती करूँ, लिये प्रकंपित गात
करुणा दृष्टि बनी रहे , मांगू वर ये तात
जगमग ऊषा सुन्दरी,चली धरा की ओर
छलका कलश अबीर का, उतरी हँसती भोर
रात चली देकर कँवल, तारे लिए समेट
विहँसी तब निर्मल धरा, सखि होगी कल भेंट
पाती अलि की ज्यों मिली, महके पढ़कर फूल
मुस्काई खिलती कली, हँसी गया अलि भूल
मुदित हुए खर पात हैं, चकवा हुआ उदास
नृत्य करें किरणें चपल , पवन करे मृदु हास
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