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00:33, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
कइसे गुजर अब होइ अइसे गुजरिया
धन्धा न पानी
सूनी परी है जइसे सारी नगरिया
धन्धा न पानी
आपनि बिथा हम रोई पथरन के आगे
हमरे करेजे मइहां मुसवा हैं लागे
झांझर परी है हमरे मन की चदरिया
धन्धा न पानी
कारी अंधेरिया दउरै लै लै कै लाठी
लकड़ी कै घोड़वा लादे लोहे कै काठी
हमरे करम मा नाहीं कउनौ उजेरिया
धन्धा न पानी
हउसन प पाला परिगे सपना झुराने
सातिर सिकारी द्याखौ बइठे मुहाने
का जानी अब को लेई हमरी खबरिया
धन्धा न पानी
</poem>