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00:33, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
रचै जिन्दगी धरती अंबर पवन अगिनि औ पानी
समय सलामी देति फिरै सबु दुनिया लगै सुहानी
याकै सुर मा गाय रहे हैं
एका एका एका!
याकै मंत्रु बताय रहे हैं
एका एका एका!!
यहि की खातिनि फांसी चढ़िगा भगतसिंह मतवाला
सांस सांस मा यहै बसा है यू अमरितु का प्याला
सबिता नखत चनरमा यक्कै बात बतावति आवैं
द्याखौ हम तौ लाय रहे हैं
एका एका एका!!
भेदुभाव ते बिपदा उपजै टूटै भाईचारा
आगि बरै चौगिर्दा तइकै जमिकै चलै पंवारा
बड़े नीक हैं जी अपने स्वारथ का पाछे कइकै
छप्पर तना छवाय रहे हैं
एका एका एका!!
देसु न सुधरी भूख न जाई मिटी न धांधागरदी
एकु भये बिनु रोकि न पइहौ ल्वागन कै मोटमरदी
जागौ द्याखौ सहर गाउं बन परबत करवट बदलें
यहै धुजा फहराय रहे हैं
एका एका एका!!
</poem>