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01:05, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
सुनौ हो भइया हमहू देखेन
सपना एकु अनोखा!
मेहनति की माया ते चमका
घर दुआरु चउबारा
लूटि फूंकि औ धांधागरदी
ह्वै गे नौ दुइ ग्यारा
लाला अब ना डंडी मारैं
नेता देइं न धोखा!
छ्वाट मुलुक ते बड़ा न ब्वालै
हथियारन कै बोली
गै बिलाय धरती पर ते
खउआबीरन कै टोली
आंगन मा यतना सुख उमगा
हमते जाइ न जोखा!
मौसम आपन रंग देखावै
फसिलि छमाछम नाचै
कउनौ जोगी गल्लिन गल्लिन
ढाई आखर बांचै
दसौ दिसा मा नयी भोर कै
गीतु गूंजिगा चोखा!
</poem>