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01:09, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
साधो अब ना जाब बजारै
रुपया क दानव घूमि घूमि कै ल्वागन का ललकारै
कउनौ चीज नीकि लागै तौ महंगी आंसु निकारै
विष्णुप्रिया फिरि चढ़ीं बड़ेरी इनका कौन उतारै
दुलहिनि आय रमैया की या लूटै तइकै मारै
काला पइसा छुट्टा भइंसा ई का कौन संभारै
चीजैं हैं मनई ते बढ़िकै लालचु गेंदु उलारै
बम्बै बोलि रहे अम्बानी होरी छाती फारै
ख्यात हजम कै बनैं बिल्डिंगै रुपयन की जैकारै
पूंजीपति सुरबग्घी ख्यालैं को जीतै को हारै
</poem>