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01:16, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
साधो यहै तरक्की आय
कुछु के मुंह मा सोने क सिक्का कुछु के मुंह मा हाय
ई बिकास की राह प चलिकै देसु कहां तक जाय
ख्यातन केरी फसिलि छांड़िकै सब कुछु महंग बिकाय
कर्जु लेय फिरि कसै सिकंजा देति सबै रगदाय
हारि क होरी आपनि देंही फांसि प दे लटकाय
प्रेमचंद होती तौ लिखती भांति भांति समुझाय
हब को द्याखै आपनि ढपली ठेलुहा रहे बजाय
हकु न मिलै भिच्छा मांगे ते गवा समझि मा आय
उइकी बढ़िकै नट्टी पकरौ जो तुमते खउख्याय
</poem>