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{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
ललचाई आँखिन ते बेटवा
द्याखै गुड़ कै पारी
ऊपर ते मिठबोलना बनिया
टेंटे धरे दुधारी

खाय रहा कोउ दाख छोहारा
कोऊ फ्याँटै गड्डी
लरिकउना भूखन के मारे
ख्यालति नहीं कबड्डी

मरै जियै के साथी
ट्वाला मा अब नहीं रहे
अमराइन पर रोजु चलति है
अब स्वारथ कै आरी

हम बरधन-घोड़वन की नाँई
मेहनति करति रहेन
जोर-जुलुम मौसम के चाबुक
अब लौ खूब सहेन

हाँथ-पाँव सब दगा दइ रहे
अब तौ ताब नहीं
अइसे-मन मनचले परोसी
हम पर किहे सवारी

नाम डकैती मा लिखवाइनि
जब ते भइया क्यार
सच्चाई का मिल न सका
तब कोउ जमानतदार

रस्ता बदल लेति हैं
दुरिही ते अब नातेदार
दुआ बंदगिउ करै न कोऊ
है ई बिधि लाचारी

<poem>