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01:47, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
बरबर बरबर लाग रहति है
इहिका मउत न आवै
कबहूँ राति राति भरि खाँसै
जोर जोर गोहरावै
आपनि करनी भूलि बैठ है
दुसरेन का ट्वाकति है
लबर-लबर दिन-राति करति है
अपनै का स्वाचति है
तनकी तनकी बातन पर यू
मुहु भरि गरियावै
लरिकन ते दुसमनी निभावै
घुइरि घुइरि खउख्याय
हुक्का पियै दुवारे बइठै
अकझै औ चिल्लाय
अतनी ताकत है की के की-
बुढ़वा का समुझावै
<poem>