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लौटना नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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21:03, 25 मार्च 2019
चला हूँ नंगे पाँव
कोई न ठौर ।
-0-
108
मरण पीड़ा
प्रतिपल सहते
होंठ कसैले।
109
दुख सहेंगे
उफ नहीं कहेंगे
चिन्ता तुम्हारी।
110
जितना जिया
कालकूट पीकर
अमर हुए।
<poem>
वीरबाला
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