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सॉनेट (हर सांझ...) / कुमार मुकुल
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08:32, 28 मार्च 2019
इन्हीं रहस्यों में उलझाता हुआ मैं खुद
को, कहीं बहुत कुछ सुलझाता जाता हूं।
मेरा जो भी
छूअ
छूट
वहां उस क्षण जाता है
उसे बचाना नहीं रहा अब मेरे वश में।
उस खोने में भी, बहुत कुछ पा जाता हूं
Kumar mukul
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