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चान्दनी और बादल / जगदीश गुप्त
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18:21, 30 मार्च 2019
प्रेत-सी कारी डरारी देह चकनाचूर;
लड़खड़ाते-डगमगाते पैर
मुड़ी-ऐंठी सूँड़-सी बाँहें पड़ी ढीली ।
अनिल जनविजय
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