Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
वसन्ती भोर में
सूर्य की सुनहरी रश्मियों में
तुम नहा रही हो
अपने में मगन
सुनहले पाँव ...
मनोहर ग्रीवा — स्कन्ध
कितने प्यारे
कितने मनहर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[सुधीर सक्सेना]]'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits