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11:26, 22 अप्रैल 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
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<poem>
चाँद क्यों रात को, हसीन बना देता है?
अंधेरी रात को, हसीं ख्वाब दिखा देता है
यह सच्चाई ब्राह्मणवाद की जानो यारों
जो आंसू की धार को बरसात बता देता है
हमारे आंसू से कोई भी जम जाती है
जो मेरी बस्ती में दूर से दिखाई देती है
संगीत की दुनिया में वह दर्द कहाँ?
जो एक दलित के घर से सुनाई देती है
अब न होगी विरान मेरी दास्तां
सारे ज़ुल्मी व ज़ुल्म मिटाऊंगा मैं
जिसने इतिहास है मेरा मिटाया
उनके सीने में खंजर उतारूंगा मैं
</poem>