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03:39, 23 अप्रैल 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
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<poem>
मैं चराता हूँ गाय भैंस को
तुम चराती हो बकरियां
मेमनों को गोद ले करके
कितने भेड़ों के दरमियां
बांसुरी धुन मृदुलतम
तान गीतों की अठखेलियां
छन्द की हर बंद तुम हो
गज़ल की मदहोशियां
चारगाह का समन्दर, मौज कैसे मारता
तेरे बाहों में मोहब्बत, मौज कैसे मारता
गांव की गोरी में, बसन्त का हंसता सुमन
तेरे पायल की छना-नन, है मुझे पुकारता
घर से ऐसे लेके चलती, मेमनों की टोलियां
चल रे टुन-मुन बोलती, मेमनों की बोलियां
होंठ पे खिलता हो जैसे, ओस का हंसता कमल
काजलों के बादलों में, हंसता क्या तेरा नयन
जानवर के झुंड में, तुम्हें देखते छिप जाता हूँ
आंख मिचौली खेलते, पीछे तेरे छिप जाता हूँ
लायी खाने की रोटियां, तेरे हाथ से खाता हूँ मैं
कंधे पर बैठाकर तुम्हें, फिर कैसे मुस्काता हूँ मैं
धूप न लगती मुझे, तेरे आंचल के सामने
गिर गया तेरे कदम में, बेरियों के कांटों ने
तन्हा कैसे आ गिरी थी, दौड़ी मेरे बांहों में
नाजो अदा को तेरे, किस छन्द का आयाम दूं
मैं गवारूं बावला, तेरे हुस्न को क्या नाम दूं
जब पढ़ा अक्षर नहीं, छुआ न कागज कलम
मैं चरवाहा तेरे गांव का, बोल क्या नाम दूं
गांव के हर जानवर पर, काम है चरवाही का
नदी के इस पार जाना, आना बिना नाई का
उम्र मेरी ऐसे, जानवर चराते बीत जायेगी
मैं कुंवारा मरुंगा, यदि शादी न हो पायेगी
मैं तुम्हारे साथ रहकर, ज़िन्दगी जी पाऊंगी
मैं भी चरवाहन, न बिन तेरे रह पाऊं
तुम चराते गांव, मैं घर की बकरी चराती हूँ
जीवन का हर राग तेरे साथ ही मैं गाऊंगी।
तुम मन के प्रीत मेरे, अंग-अंग तरुणाई के
चट्टानों से मजबूत खड़े, साथ मेरे परछाई से
लता शाख सी बिन, लिपटी न रह पाती हूँ
तुमसे दूर रही गर कुछ, सपनों में खो जाती हूँ
मुझे चरवाहा मिले, तो क्या अच्छी बात नहीं?
लाट साहब न मन मेरे, जो आये कोई काम नहीं
तुम मेरे जीवन के साथी, है ऐसा कोई नाम नहीं
बेनाम गर मर जायें, तो भी ऐसा कुछ काम नहीं
चट्टान पर बैठ साथ हम, मवेशियां चरायेंगे
अपने बच्चों को पढ़ाकर लाट साहब बनायेंगे
मजदूरी करुंगा मैं, तुमसे भेड़ न चरवाऊंगा
एक दूजे को टेककर, चैन की वंशी बजाऊंगा
</poem>