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03:47, 23 अप्रैल 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
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<poem>
दलित को जानवर समझने का तावीर किया
क्यों इस अमल1 से तैयार यह ज़मीर2 किया
ऐसे कुछ लोगों पर रहा खुमार सदियों तक
मुझे इंसान न समझा और बहुत देर किया
बताओ कैसे वजूद रहा, ज़िन्दा मेरा जमाने में
आजय यह दिया सोच कर ही हाथ में शमसीर3 लिया
न देखा गया फिर उन ज़ुल्म की घटाओं को
जिन्होंने आसमां से था नूर मेरा छीन लिया
साजिश की घटा मेरी बर्बादी पर न बरस
तू भी जल जायेगी गर ‘बाग़ी’ सीना चीर
</poem>