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09:40, 23 अप्रैल 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
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<poem>
दलित बस्तियां कभी उदास न होती
अगर दमन से दबी आवाज न होती
सदियों पहले सम्मान मिल अगर जाता
अस्मिता किसी के द्वार नीलाम न होती
मेरे संघर्ष का इतिहास भी नहीं मिलता
अगर आवाज उठी बार-बार न होती
</poem>