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भूल जाओ जलावतनों को / ज्योत्स्ना मिश्रा
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12:22, 29 अप्रैल 2019
हर अलग शै को चुन-चुन कर निकालो
ये दोस्ती निभाने का समय नहीं
संस्कृति ,सभ्यता ,सहिष्णुता
सबको जलावतन कर दो ।
फिर उन जलावतनों को भूल जाओ ।
</poem>
अनिल जनविजय
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