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उससे अपनी किस्‍मत
चमकाए फिर सकते हो
प्‍यारपीडि़त जनेां की आत्‍मा का एकल और संयुक्‍त इश्‍तहार कि हां हम अकेले है पीडि़त हैं क्षुधित हैं पर हम ही भर सकते हैं विश्‍व का अक्षय अनंत अन्‍न,रत्‍नकोश कि हमारी असमाप्‍त क्षुधा का तुम नहीं कर सकते व्‍योपार...प्‍यार प्‍यार प्‍यार आदमी के अंतर और बाहर दसों दिशाओ से आती है एक ही पुकार प्‍यार प्‍यार प्‍यार
{ अरूणा राय के लिए , एक सुबह जिनका चैट पर इंतजार करते यह कविता लिखी थी }