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131
‘पूछेंगे’ हमसे कहा, ‘मन के कई सवाल।’
पूछा फिर भी कुछ नहीं, मन में यही मलाल।।
232
द्वार -द्वार हम तो गए, बुझे दुखों की आग।
हाथ जले तन भी जला, लगे हमीं पर दाग।।
333
दर्द लिये जागे रहे ,हम तो सारी रात।
उनकी चुप्पी ही रही ,कही न कोई बात।
434
करना है तो कीजिए,लाख बार धिक्कार।
इतना अपने हाथ में ,आएँगे हम द्वार।।
535
दुख अपने दे दो हमें, माँगी इतनी भीख।
द्वार भोर तक बन्द थे,हम क्या देते सीख।।
636
माफ़ी दे देना हमें, हम तो सिर्फ फ़क़ीर।
कुछ न किसी को दे सके.ऐसी है तक़दीर।।
737
जाने कैसे खुभ गई,दिल में तिरछी फाँस।
प्राण कण्ठ पर आ गए, रुकने को है साँस।।
838
जब जागोगे भोर में ,खोलोगे तुम द्वार।
देहरी तक भीगी मिले, सिसकी, आँसू -धार।।
939
सबके अपने काफिले,सबका अपना शोर।
निपट अकेले हम चले,अस्ताचल की ओर।
1040
दंड न इतना दीजिए,मुझको अरे हुज़ूर!
छोड़ जगत को चल पडूँ ,होकर मैं मजबूर।।
1141
बहुत हुए अपराध हैं,बहुत किए हैं पाप।
माफ़ करो अब तो मुझे,मैं केवल अभिशाप।।
1242
आया था मैं द्वार पर,हर लूँ तेरी पीर।
आएगा अब ना कभी,द्वारे मूर्ख फ़क़ीर।
1343
क्रोध लेश भर भी नहीं , ना मन में सन्ताप।
उसको कुछ कब चाहिए,जिसके केवल आप।
1444
झोली भर-भर कर मिला,मुझको जग में प्यार।
सबसे ऊपर तुम मिले,इस जग का उपहार।
1545
बस इतनी -सी कामना,हर पल रहना साथ।
दोष हमारे भूलकर,सदा थामना हाथ।।
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