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13:33, 21 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>
कल फिर रहे थे जो यहां बे-आबरू जनाब
चर्चे उन्हीं के होने लगे चार सू जनाब।
हम दिल के कारोबार में कुछ इस तरह लुटे
मुश्किल से बच सकी है फ़क़त आबरू जनाब।
अक्सर मुझे डराती है यारों की दुश्मनी
लेकिन नहीं ज़रा-सा भी ख़ौफ़े-अदू जनाब।
अहसास ही नहीं रहा अपने वजूद का
जब भी हुए हैं आपसे हम रूबरू जनाब।
दर्पण के सामने न झुकानी पड़े नज़र
है दिल में मेरे एक यही आरज़ू जनाब।
</poem>