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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
}}
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<poem>

महफ़िल में उनके आर से हलचल सी हो गई
आंख एक एक शख्स की चंचल सी हो गई।

इक बार क्या गुज़र गये मेरी गली से वो
पूरे ही गांव की हवा संदल सी हो गई।

दो डग भरे जो तुमने मेरे साथ हमनशीं
पुरख़ार ज़िन्दगी मेरी मखमल सी हो गई।

कल शब तुम्हारी याद का आपम अजीब था
यादों की हर छनक लगा पायल सी हो गई।

वो आएंगे नहीं ये खबर तीर सी लगी
और हिरनी इंतज़ार की घायल सी हो गई।

जब से गये हैं शहर से कुछ दिलनवाज़ लोग
बस्ती हमारी ऐ 'ऋषि' जंगल सी हो गई।
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