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13:54, 21 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
|अनुवादक=
|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
है नशे में या तबीअत ही तेरी नासाज़ है
दोस्त मुझको कह रहा है आज 'तू' क्या राज़ है।
गीत खुशियों के भी आंसू बन के आखिर बह गये
वक़्त के हाथों में शायद दर्द का इक साज़ है।
ख़ौफ़ में डूबे परिंदे जाएं तो जाएं कहां
हर तरफ इनको नज़र आता शिकारी बाज़ है।
है बुरा हंसना किसी की मौत पर ऐ दोस्तो
माना हंसना आपका सबसे हसीं अंदाज़ है।
हूँ ज़मीं से भी जुदा और आसमां मिलता नहीं
सोचता हूँ ये मुझे कैसी मिली परवाज़ है।
पड़ गई आदत सभी को ज़ुल्म सहने की यहां
हक़ घटित कुछ भी मगर उठती नहीं आवाज़ है।
तंज़ के पत्थर उछाले जा रहे हो आज क्यों
क्या नई इक दुश्मनी का जो रहा आग़ाज़ है।
</poem>