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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
अगर हो देखना इस मुल्क में फिर से जवां उर्दू
दुआ हो फिर से घर लौटे अदब की कहकशां उर्दू।

अमूमन ज़ायका इसका, मिला जिसको, वो क्यों भूले
लबों पर किस तरह होती है पल भर में रवां उर्दू।

उड़े अख़लाक़ से ख़ुशबू हंसे तहज़ीब लासानी
बहुत गहरा असर डाले तेरा तर्ज़े-बयां उर्दू।

ये चाहे वक़्त फिर उर्दू को हिन्दी में लिखा जाये
चले फिर शान से, शाइस्तगी से कारवां उर्दू।

न चूकी मात देने में भले इंग्लिश अदीबों को
मगर करती रही दिल पर हुक़ूमत बेकरां उर्दू।

करो दुश्मन किसी भी शक्ल में आगे रहे ज़िंदा
शराफ़त की, लताफ़त की, महब्बत की ज़बां उर्दू।

बराबर बोलना उर्दू अगर घर में रहे जारी
कभी होगी नहीं 'विश्वास' अपनी नातवां उर्दू।
</poem>
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