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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
आप की हर इक अदा क़ातिल नज़र मालूम है
कह रहे हैं आप किसको बेख़बर, मालूम है।

दे बता कोई, गया क्यों दोस्त वादे से मुकर
दोस्ती को लग गई किसकी नज़र मालूम है।

शर्तिया पैनी नज़र रख धार पर, तलवार पर
कब सफीने को दग़ा दे दे भँवर मालूम है।

आंधियां, लू के थपेड़े, वक़्त के तूफ़ान को
कब तलक रोकेगा ये बूढ़ा शजर मालूम है।

बात किससे कौन कह दी, है अखरता बाद में
मुझको धोखा दे रही मेरी नज़र मालूम है।

शाम होते, होने लगता जाने किसका इंतज़ार
जब न आयेगी जवानी लौट कर मालूम है।

</poem>
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