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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
धुंधली न रंगत हो सकी कायम अभी तक शान है
रौनक न रत्ती भर घटी ये देख जग हैरान है।

सिरमौर उन नगरों का ये इतिहास में पाया गया
जिनकी बदौलत मुल्क ये नायाब हिन्दोस्तान है।

जो एक दिन ठहरा यहां, बस वो यहां का हो गया
ऐसा मुहब्बत का नगर मिलना कहां आसान है।

मशहूर पूरे मुल्क में रौशन किनारा गोमती
तारीख में शामे-अवध रखती अलग पहचान है।

बेसाख़्ता निकले ज़बां से देख क़ैसरबाग़ को
दर्जा तेरा बारादरी अब भी अज़ीमुश्शान है।

आबो-हवा, तहज़ीब ज़िंदा है अभी पूरी तरह
बदला हुआ ये लखनऊ कहता है जो नादान है।

'विश्वास' अपने शहर में मजबूत हैं रिश्ते बहुत
लौटा यहां से मात खा हर बार हर तूफ़ान है।
</poem>
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