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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
भरा फसलों से घर आंगन, सजा दरबार दीवाली
खुशी मटके में भर लाई तुम्हारे द्वार दीवाली ।

चखा जिसने मज़ा श्रम का नहीं रोगी ऋणी होगा
बताती है परिश्रम को सुकूं का सार दीवाली।

नहीं आयेगी खुशहाली पटाखे ताश कौड़ी से
जुआ खेला तो कर देगी घर बार दीवाली।

रमा के पांव की रुन-झुन सुनो, आओ चलो पूजें
बताशा, खील, लड्डू, दूब से भर थार दीवाली।

गुज़ारिश की गई इस दिन कभी खाली न जाती है
धनी निर्धन सभी के घर भरे भंडार दीवाली।

महागणपति महालक्ष्मी का पूजन हो जहां दिल से
वहां फिर अन्न, धन, सुख की करे बौछार दीवाली।

धँसा है नाक में सबकी धुआं महँगाई का जब से
कई वर्षों से लगती है बहुत बीमार दीवाली।

चरण गणपति के छू मातेश्वरी 'विश्वास' ये मांगे
बराबर से फले सबको सदा त्यौहार दीवाली।
</poem>
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